गुरु शरण

 
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान।
शीश दिया जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान॥

गुरु कुम्भहार शिष्य कुम्भ, गढ़ गढ़ काढ़े खोट।
अन्दर हाथ पसार के बाहर मारे चोंट॥
 
प्रतिवर्ष प्रतिभास्थली की छात्राएं गुरूजी के दर्शन हेतु उनकी शरण में जाती हैं और उनकी पूर्ण दिनचर्या के दर्शन कर आत्मोन्नति का मार्ग प्राप्त करती हैं ।

इनका जीवन गुरु आज्ञामयी हो और गुरु महिमा को समझ ये अपने जीवन को सार्थक और गरिमामयी बनाएं ऐसी प्रतिभास्थली परिवार की मंगल भावनाएं हैं ... ... ... इन सभी को सदा मिलती रहे गुरु शरण।