गुरुकुल परंपरा सदियों से हमारे भारत में चली आ रही थी, जिस परंपरा में संरक्षित था हमारा इतिहास, ज्ञान, विज्ञान, और हमारे संस्कार । मानव को मानव बनाने की जो कला हमारे गुरूकुलों में मिलती थी उससे कई देशों व राष्ट्रो ने शिक्षा प्राप्त की है इसी गुरुकुल परंपरा की परछाई है हमारी "प्रतिभास्थली" ।
प्रतिभास्थली पल्लवित हुई धरती के देवता संत शिरोमणि आचार्य गुरुवर 108 श्री विद्यासागर जी महाराज के आशीर्वाद और उनकी असीम अनुकम्पा से, यह शिक्षा का वह परिसर है जहाँ शिक्षा के साथ संस्कारों का आदान प्रदान बाल – बालब्रह्मचारिणी शिक्षिकाओं के द्वारा निस्वार्थ भाव से दिया जाता है।
‘‘यहाँ शिक्षा का लक्ष्य जीवन का निर्वाह नहीं निर्माण है।’’