पायसपूर्णा

 
आहार ही सबसे बड़ी औषधि होती है, और भोजनशाला सबसे बड़ी ओषधालय । यदि आहार को ही औषधि बनाया जाए तो रोगों से कभी मिलन नहीं होगा।

छात्राओं के तन व मन की रुग्णता को दूर करने हेतु प्रतिभास्थली में एक भोजनशाला है जिसको आचार्यश्री 108 विद्यासागरजी महाराज ने पायसपूर्णा शुभ नाम दिया है।
 
प्रतिभास्थली के पायसपूर्णा में छात्राओं को पौष्टिक एवं स्वादिष्ट भोजन उपलब्ध कराया जाता है, जिससे वे स्वस्थ तथा निरोगी रहें । पायसपूर्णा में सारा कार्य दीदियों की देख-रेख में कर्तव्यरत भाभियों जो पूर्ण मातृत्व भाव के साथ अपनी सेवायें प्रदान करती है के द्वारा किया जाता है, जिससे छात्राओं को घर की कमी महसूस न हो।

यहाँ भोजन से पूर्व प्रार्थना होती है एवं मोन से भोजन होता है । दिन में पाँच वार यह सुविधा प्रदान की जाती है जिसमें नाश्ता, भोजन, फल, दूध आदि सम्मिलित है । यहाँ स्वाद और स्वास्थ का ध्यान रखते हुए घर की बनी हुई शुद्ध सामग्री ही दी जाती है।