घर से दूर अपना घर

अगर हम किसी जगह को घर कहते हैं, तो उसके पीछे का भाव एक ऐसी जगह से होता है, जहाँ आप अपने मूल रूप में रह सकें, जहाँ आप निश्चिंत होकर सहज रूप से रह सकें, जहाँ आप वह सब कर सकें, जो आपके लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण और प्रिय हो।

वह स्थान जो मात्र रेत, मिट्टी, ईट का बना होता है वह घर की श्रेणी में नहीं आता घर वह होता है जहाँ परिवार के लोग प्रेम, एकता और वात्सल्य के साथ मिलकर रहते हैं, हर एक सुख-दुःख में एक दुसरे का सहयोग करते है।

ऐसा ही एक घर है प्रतिभास्थली में जहाँ छात्राएं एक साथ मिलकर रहती हैं यह घर भी अपने घर जैसा ही लगता है, अपने इस घर को हम सोमासदन, सीता कुटीर, नीली निलय कहते है। जहाँ लगभग 300 छात्राएं और 50 शिक्षिकाएं एक साथ मिलकर रहते है। प्रतिभास्थली में छात्राओं के आवास छात्रावास मात्र नहीं अपने घर से लगते हैं।